Wednesday, November 28, 2012

उतार पर है नीतीश के सुशासन का जादू


फ़ज़ल इमाम मल्लिक

अधिकार यात्रा पर निकले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सांसत में हैं। प्रदेश भर में उनका जिस तरह से विरोध हुआ इससे उनके सुशासन के दावों की कलई खुल गई है। बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के मकसद से उन्होंने यह यात्रा शुरू की थी। इस यात्रा के जरिए वे पार्टी के नवंबर में होने वाली अधिकार रैली की तैयारी में जुटे थे। लेकिन हर जगह उन्हें भारी विरोध का सामना करना पड़ा। कई जगह उन्हें चप्पलें दिखाई गईं तो कई जगह काले झंडे। अपने विरोध से बौखलाए नीतीश कुमार ने सार्वजनिक सभा में यहां तक कह दिया कि अगर लोकतंत्र पर उन्हें यकीन नहीं होता तो यहां जमा भीड़ प्रदर्शन कर रहे लोगों का क्या हश्र कर देती पता नहीं। वे इतना पर ही नहीं रुके बाहुबलि रणबीर यादव की भी तारीफ की जिन्होंने प्रदर्शन कर रहे लोगों को धमकाने के लिए उनके सामने पुलिस की र्काबाइन छीन कर फाइरिंग कर लोगों को धमकाया। हद तो यह है कि उनकी इस हरकत पर उनके ख्रिलाफ अब तक कोई मुकदमा तक दर्ज नहीं हुआ है। जबकि प्रदर्शन कर रहे शिक्षकों पर पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर दिया है।
अधिकार यात्रा के दौरान नीतीश जब खगड़िया पहुंचे तो वहां भी नियोजित शिक्षकों का विरोध झेलना पड़ा। तब जद (एकी) विधायक पूनम देवी के पति रणवीर यादव ने पुलिस की कारबाइन कर फाइरगिं की और लोगों को धमकाया।  रणबीर यादव भी विधायक रहे थे। वे दबंग और बाहुबलि हैं और अपना दामन साफ रखने के लिए नीतीश कुमार ने उनका टिकट काट कर उनकी पत्नी को टिकट दिया था। वे संदेश देना चाहते थे कि जद (एकी) बाहुबलियों को टिकट देने के खिलाफ है। लेकिन उनकी मंशा साफ थी और खगड़िया में यह देखने को मिला। नीतीश कुमार की मौजूदगी में एक बाहबलि पुलिस से कारबाइन छीन लेता है और उस पर अभी तक कोई कारर्वाई नहीं होती। दिलचस्प बात यह है कि बाहुबलि नेता रणबीर यादव इसे सही ठहरा रहे हैं और ऐसा करते हुए वे भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद वगैरह की मिसाल देते हैं। रणधीर यादव ने कहा कि देश की आजादी के लिए चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह ने हथियार उठाया था और मैंने एक मुख्यमंत्री को बचाने के लिए। उनकी पत्नी और विधायक पूनम पांडेय भी मानती हैं कि भीड़ उग्र थी और वह मुख्यमंत्री की हत्या करना चाहती थी। जद (एकी) के तमाम नेता भी यही हत्या राग को गाते हुए विपक्ष की साजिश करार दे रहे हैं लेकिन ऐसा करते हुए वे यह भूल जाते हैं कि सत्ता नीतीश के हाथ में है। खुफिया तंत्र से लेकर पुलिस और प्रशासन उनकी अपनी है तो फिर सरकार को यह खबर क्यों नहीं हुई कि नीतीश की हत्या की साजिश थी। और बड़ा सवाल यह कि अगर भीड़ उग्र थी तो किसी को भी पुलिस से कारबाइन छीनने का हक किसने दिया है। विपक्ष की साजिश करार देने वाले जद (एकी) नेताओं के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि कुछ जगहों पर तो सरकार में शामिल भाजपा की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सदस्यों ने नीतीश के खिलाफ प्रदशर््न किया। विरोध से तिलमिलाए नीतीश ने अब प्रशासन को यहां तक आदेश दे दिया है कि उनकी सभा में बिना पास के कोई प्रवेश नहीं कर सकता है और न ही उनकी सभा में कोई काली कमीज पहन कर या दोपट्टा ओढ़ कर आए। सभा में काले छाते लाने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है।
दरअसल नीतीश तानाशाही प्रवृति के हैं और प्रदेश में पहली बार उनका विरोध हो रहा है। अब तक उनका सारा सुशासन नारों और भाषणों तक ही रहा है। वे अधिकार यात्रा पर निकले हैं लेकिन जब शिक्षक अपने अधिकार की बात कहते हैं तो नीतीश संयम खोते हैं। बिहार में नियोजित शिक्षकों की तादाद एक लाख से ज्यादा है और उन्हें छह से लेकर आठ हजार रुपए तनख्वाह मिलती है। शिक्षक अपनी तनख्वाह बढ़ाने के साथ-साथ दूसरी सुविधा देने की मांग कर रहे थे और नीतीश को यह पसंद नहीं आया। इसलिए दरभंगा में उन्होंने किसी तानाशाह की तरह एलान कर दिया कि वे उन्हें उनका अधिकार नहीं देंगे।
विपक्ष को नीतीश पर हमला बोलने का मौका मिला है। विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी कहते हैं कि नीतीश के सुशासन की पोल खुल रही है तो वे बौखला रहे हैं। बिहार नवनिर्माण मंच के संयोजक उपेंद्र कुशवाहा कहते हैं कि नीतीश के तौर-तरीकों का सच सामने आ रहा है। वे पार्टी और पार्टी से बाहर भी तानाशाह की तरह पेश आते हैं। मंच के सहसंयोजक शंकर आजाद नीतीश की नीतियों की आलोचना करते हुए कहते हैं कि वे अपने खिलाफ कुछ बी सुनना पसंद नहीं करते हैं और अब तक बिहार के लोगों को भ्रमा कर शासन कर रहे थे। ऐसा नहीं है कि पहली बार उनका इस तरह का विरोध हुआ है। उनके विश्वास और विकास यात्रा के दौरान भी विरोध हुआ था लेकिन मीडिया ने उन पर तवज्जो नहीं दी क्योंकि बिहार में नीतीश ने मीडिया पर अघोषित सेंसर लगा रखा था। बिहार युवक कांग्रेस के अध्यक्ष ललन कुमार ने कहा है कि सरकार के मुखिया ने जिस भाषा का इस्तेमाल किया, उसकी जितनी भी निंदा की जाए कम है। बिहार में सरकार के खिलाफ लोगों में गुस्सा है और वह गुस्सा नीतीश की सभाओं में सामने आ रहा है। नीतीश पिछले सात-आठ साल से सिर्फ विकास का नारा ही लगाते रहे हैं जमीन पर कुछ भी नहीं हुआ है। जाहिर है कि लोगों का गुस्सा तो फूटना ही था।
बहरहाल इसे लेकर बिहार में राजाीति   भी गरमा गई है। जद (एकी) नेताओं के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि नीतीश को मारने की कौन और क्यों साजशि कर रहा है। जद (एकी) ने इसके लिए राजद पर आरोप लगाया है। इस बीच राजद प्रमुख लालू यादव परिवर्तन यात्रा पर निकले हुए हैं। उधर कुशवाहा अपने साथियों के साथ संकल्प यात्रा पर हैं। लालू यादव अपना खोया जनाधार पाने के लिए लोगों के बीच जा रहे हैं। उनके साथ यों तो रामविलास पासवान हैं लेकिन लोक जनशक्ति पार्टी उनकी अगुआई में अलग तरीके से नीतीश के कामकाज का विरोध कर रहा है। विपक्ष के इन हमलों के बीच जद (एकी) और भाजपा अलग-अलग सुर में गा रहे हैं। सूत्रों की मानें तो भाजपा 2014 के लोकसभा चुनाव में सभी चालीस सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सी.पी. ठाकुर ने इसका इजहार भी किया था। भाजपा में यह कवायद करीब साल भर से चल रही है। पार्टी अब नीतीश के शिकंजे से खुद को निकालना चाहती है। हालांकि इससे पहले नीतीश ने भी सभी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने के संकेत दिए थे।
यों भी भाजपा और जद (एकी) के बीच चल रही तनातनी से नीतीश की परेशानी कम नहीं हो रही है। उन्हें अब जगह-जगह लोगों के विरोध का सामना तो करना ही पड़ रहा है, सरकार में शामिल भाजपा भी उनके कामकाज के तरीकों से नाराज है।भाजपा सांसद ने अपनी ही सरकार पर जम कर निशाना साधा। पूर्णिया के सांसद उदय सिंह के बयान ने खुद उनकी पार्टी को तो सांसत में डाला ही है, जद (एकी) में भी उनके बयान से बेचैनी बढ़ी उदय सिंह ने तीस सितंबर को बिहार सरकार के खिलाफ ‘वेदना प्रदर्शन’ कर नीतीश को जम कर कोसा।
उदय सिंह यहां से दूसरी बार चुन कर संसद पहुंचे हैं। इलाके में वे लोकप्रिय हैं। परिवार के लोग राजनीति और सत्ता से जुड़े रहे हैं। वे राज्यसभा सदस्य एनके सिंह के अनुज हैं। लेकिन उनके सरकार विरोधी प्रदर्शन से हड़कंप है। सिंह ने कहा कि गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले परिवारों की दशा में कोई सुधार नहीं हो रहा है। जिन्हें राशन और किरासन मिलना चाहिए, उन्हें नहीं मिल रहा है। इंदिरा आवास हो या मनरेगा, तमाम योजनाओं में लूट और भ्रष्टचार है। इसके लिए कौन जिम्मेदार है? जानकार बताते हैं कि जद (एकी) के कई सांसद हैं, जिन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनके कामकाज पर सवालिया निशान लगाया। लोगों की समस्याओं को सामने रख नीतीश कुमार की सरकार को घेरा। ऐसे सासंदों मेंं राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह, उपेंद्र कुशवाहा, मंगनी लाल मंडल प्रंमुख हैं। ललन सिंह और मंगनी लाल मंडल लोकसभा के सदस्य हैं। उपेंद्र कुशवाहा राज्यसभा के सदस्य हैें। जद (एकी) की ओर से उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई भी की गई। भाजपा सांसद उदय सिंह पहले सांसद हैं, जिन्होेंने पार्टी और सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है।
भाजपा और जद (एकी) के बीच कटुता लगातार बढ़ रही है। जद (एकी) सांसद कैप्टन जयनाराययण प्रसाद निषाद के ताजा बयान ने आग में घी का काम किया है। निषाद ने भाजपा को मीठा जहर बताते हुए उससे जल्द किनारा कर लेने को नीतीश को कहा है। जाहिर है कि भाजपा में इसकी कड़ी प्रतिक्रिया हुई है। सीपी ठाकुर के साथ-साथ नीतीश सरकार में मंत्री गरिीराज सिंह ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई है। राजग के इन दो दलों के बीच जिस तरह से तकरार बढ़ रहा है उससे नए राजनीतिक संदेश भी जाते हैं। फिलहाल इन आरोप-प्रत्यारोपों के बीच सरकार चल रही है और गठबंधन भी। लेकिन यह कब तक चलेगा, निगाहें इस पर रहेंगी क्योंकि भाजपा अगले साल मार्च-अप्रैल में पटना में रैली करने जा रही है और उस रैली में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को भी बुलाया जाएगा। मोदी के बिहार आने पर नीतीश की प्रतिक्रिया क्या रहेगी, इस पर भी राजनीतिक विशलेषकों की नजर रहेगी।

Wednesday, November 21, 2012

शर्म उनको मगर नहीं आती !

  

फ़ज़ल इमाम मल्लिक

वह एक ऐतिहासिक क्षण था। लेकिन वह क्षण बहस-मुबाहसिों में ही खत्म हो गया और इन सबके बीच ही लोकपाल विधेयक कहीं बिला-सा गया। संसद में इतिहास बनना था लेकिन राजनीतिक दलों की नूरा कुश्ती और सांसद के रूप में कुछ विदूषकों की फूहड़ और मसखरेपन की वजह से लोकपाल पर जिस बहस की उम्मीद लगाए पूरा देश बैठा था वह सांसदों के हंसी-मज़ाक़ और अपने को श्रेष्ठ बताने में ही ख़त्म हो गया। भ्रष्टाचार देश में जिस तरह फल-फूल रहा है उसे रोकने के लिए शायद ही किसी सियासी दल ने गंभीरता से संसद में बहस में हिस्सा लिया। कुछ अनजान सांसदों और छोटे दलों ने ज़रूर इसे गंभीरता से लिया और लोकपाल विधेयक के हर पहलू पर चर्चा की। लेकिन अधिकांश दलों ने लोकपाल विधेयक से ज्Þयादा तवज्जो अण्णा हज़ारे को दी। उन्हें कोसने-गरियाने में ही समय ज्Þयादा लगाया। हर कोई अपने को महान बता कर संसद की गरिमा की दुहाई देता रहा। जबकि इसकी क़तई ज़रूरत नहीं थी।
देश के हर नागरिक को संसद के महत्त्व की जानकारी है। लेकिन लोकपाल विधेयक पर चर्चा के दौरान एक तरह से उन्होंने देश के अवाम को बार-बार यह चेताया कि वे कुछ नहीं है जो हैं हम हैं और हमसे ही देश का क़ानून है, संविधान है और देश हम से ही चल रहा है। लेकिन संसद की गरिमा की बात करते वक्Þत एक बात का ज़िक्र किसी ने भी नहीं किया। कर भी नहीं सकते थे। ग़ालिब के शब्दों में कहूं तो वे यह कैसे कह सकते थे कि ‘काबा किस मुंह से जाओगे ग़ालिब’। संसद की गरिमा को सांसदों ने कितना और कब-कब नुक़सान पहुंचाया है, इसे बताने की ज़हमत किसी ने नहीं की। पैसे लेकर सवाल पूछने से लेकर संसद में नोट उछालने का कारनामा तो हमारे इन महान सांसदों ने ही किया है। संसद में एक-दूसरे पर जिस तरह आए दिन छींटाकशी की जाती रही है उसकी नज़ीर भी कम ही मिलती है। सदनों में एक दूसरे को गाली देना, मंत्री से विधेयक की प्रति लेकर फाड़ डालना, एक-दूसरे पर लात-घूंसे चलाना, कुर्सियां फेंकना, माइक तोड़ना अब तो देश में आम बात है। लेकिन वे सांसद-विधयक ठहरे उन्हें हर वह काम करने की छूट है जो आम लोगों के लिए एक तरह से वर्जित होती है। वे चाहे तो ट्रेन रुकवा दें, वे चाहें तो विमान में हंगामा खड़ा कर दें, वे जब चाहें अपनी तनख्वाहें बढ़वा लें, वे चाहें तो पुलिस और प्रशासन को सर के बल खड़ा कर दें, वे चाहें तो किसी को भी ज़लील करें, वे चाहें तो सदन को बंधक बना कर आम लोगों का करोड़ों का नुकसान करें, वे कुछ भी चाह सकते हैं और कुछ भी कर सकते हैं। वे ठहरे सांसद और बाकÞी ठहरे आम लोग जो उन्हें पांच साल के लिए चुन कर संसद-विधानसभा भेजती है लेकिन इन पांच सालों में वे आम लोग अछूत हो जाते हैं और साफ झकझक कपड़े पहने महंगी विदेशी गाड़ियों पर सवार सांसद ख़ास। यह ख़ास ही उन्हें दूसरों से अलग बनाता है। इसलिए लोकपाल विधेयक पर चर्चा के दौरान अण्णा हजÞारे और उनके सहयोगियों पर जिस तरह की टिप्पणियां की गईं वे इसी ख़ास होने के घमंड में की गई।
शरद पवार को चांटा मारने पर संसद एकराय होकर इस घटना की निंदा करती है। दक्षिण-पश्चिम, बाएं-दाएं सारी विचारधाराएं लामबंद होती हैं और एक सांसद या कहें के मंत्री को चांटा मारने के ख़िलाफ़ एक सिरे से निंदा प्रस्ताव पास करती है लेकिन यही नेता-सांसद जब आम आदमी को धमकाते हैं, उसे मारते हैं, उसे प्रताड़ित करते हैं तो संसद में चुप्पी रहती है और फिर बात पार्टी लाइन पर आकर ख़त्म हो जाती है। फिर आम अवाम को सियसात की मंडी महंगाई के तमाचे तो रोज़ जड़ रही है और क्या पक्ष, क्या विपक्ष सिर्फÞ गाल बजा रहे हैं। प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री ‘जादू की छड़ी’ नहीं होने की दलील देते हैं और विपक्ष संसद में सिर्फ़ तमाशा खड़ा करता है। गंभीरता से इस ‘तमाचे’ पर चर्चा तक नहीं करता। संसद का यह विरोधाभास है और सांसदों का यह दोहरा चरित्र। इसलिए लोकपाल विधेयक पर चर्चा के दौरान सांसदों के तेवर उन आम लोगों को लेकर तल्ख़ थे जो भ्रष्टाचार, महंगाई और सरकार की उदार नीतियों से परेशान ही नहीं तंगहाल हैं। उनकी कमाई रोज़ कम होती जा रही है और सांसदों-नेताओं की कमाई रोज़ बढ़ती जा रही है। ऐसा क्यों हो रहा है, इस पर किसी ने सोचने की ज़हमत नहीं की। न तो वामपंथियों ने और न ही दक्षिणपंथियों ने। ग़रीबों की थाली की रोटी भले कम या छोटी होती जा रही हो लेकिन संसद की कैंटीन में महंगाई शर्मिंदा सी एक तरफ़ खड़ी अपने सांसदों को देसी घी में मालपुआ उड़ाते देखती है और फिर परेशान होकर बाहर आकर आम लोगों से उसका निवाला छीनने लगती है। यह सच न तो किसी गुरुदास दासगुप्ता को नज़र आता है और न ही सुषमा स्वराज को। भाषणों और नारों के बीच ही आम आदमी और आम हो जाता है और सांसद, और ख़ास होकर संसद से बाहर आता है। टीवी के कैमरे पर निर्लज्ज और बेशर्म मुस्कराहट के साथ अपनी पीठ थपथपाता है और अपने ख़ास होने के अहसास में थोड़ा और फूल जाता है।
ऐसे चेहरे लोकपाल विधेयक पर बहस के बाद ऐसी ही निर्लज्ज मुस्कान के साथ सदन के साथ बाहर आए थे। कैमरों की चमक में बाइटें देकर कारों में बैठ कर फुर्र हो गए थे। उनके निर्लज्ज चेहरे घमंड से तने थे और उन पर बेशर्मी से   लिखी इबारत साफ़ पढ़ी जा सकती थी। वह इबारत साफ़ कह रही थी कि किस माई के लाल में हिम्मत है जो लोकपाल विधेयक लाकर हम सांसदों के भ्रष्टाचार करने के अधिकार को छीन सके। ये चहरे संसद के अंदर तमतमा रहे थे और संसद के बाहर चमचमा रहे थे। इन चेहरों में फ़र्ख़ करना मुश्किल था। बस ऐसा लग रहा था कि हर चेहरा एक जैसा है जिसने लोकतंत्र को ही नहीं इस देश के उन लाखों अवाम की भावनाओं को आहत किया है जो महंगाई और भ्रष्टचार से परेशान है। इन चेहरों में तमीज़ करना मनुश्किल था कि कौन किसका चेहरा है। लालू यादव में मुलायम सिंह का अक्स नज़र आ रहा था और सुषमा स्वराज, सोनिया गांधी जैसी दिख रहीं थीं। लालकृष्ण आडवाणी का चेहरा मनमोहन सिंह जैसा लग रहा था और गुरुदास गुप्ता के चेहरे पर ममता बनर्जी की छाप दिखाई दे रही थी। कई चेहरे, लेकिन हर चेहरा एक-दूसरे से मिलता-जुलता। पार्टियां गौण हो गर्इं थीं और चेहरे टीवी कैमरों की लाइटों में भकभका रहे थे। किसने किसको कोसा, किसने किसकी चापलूसी की, यह संसद में भी दिखा और संसद के बाहर भी। सदन से निकलने वाला हर चेहरा लालू यादव का चेहरा लग रहा था। लालू यादव जिन्होंने सदन में अपने भाषण के दौरान हर आर्थिक भ्रष्टाचार पर अपनी मुहर लगा दी थी। वे हर उस सांसद के जन संपर्क अधिकारी बन गए थे जो नहीं चाहते थे कि लोकपाल विधेयक पास हो और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगे।
अपने भदेसपन और मसख़रेपन के लिए यों लालू यादव जाने जाते हैं, लेकिन संसद में उस दिन उन्होंने जो ‘गंभीर’ और ‘नायाब’ विचार रखे, उसने उनकी कुंठा, निराशा और अहंकार को सबके सामने लाकर रख दिया। पहले राजा-महाराजाओं के यहां विदूषक हुआ करते थे। संसद में इन दिनों यह भूमिका लालू यादव निभा रहे हैं। सरकार में शामिल होने की लपलपाती इच्छा ने उन्हें सोनिया गांधी और कांग्रेस पार्टी के दरबार का विदूषक बना डला है। जो काम कांग्रेस नहीं कर पाई, लालू यादव के ज़रिए उसने करवा डाला। जेपी आंदोलन की कोख से निकले लालू यादव उसी कांग्रेस के साथ गलबंहिया कर रहे हैं, जिस कांग्रेस के ख़िलाफ़ जेपी ने आंदोलन छेड़ा था। बिहार में सत्ता में रहते हुए चारा घोटाले में फंसे और जेल गए लालू यादव संसद में भ्रष्टाचार पर जिस बेशर्मी से बोल रहे थे, वह राजनीति के चेहरे पर कालिख पोत रहा था। राजनीति का यही चेहरा है जिसे बचाने में कांग्रेस ही नहीं सारी पार्टियां लगी हैं। अण्णा हज़ारे को आप गाली देते हैं, दीजिए। अण्णा हज़ारे से जुड़े लोगों पर जुमले कसते हैं, कसें। सड़क पर उतरे लाखों लोगों को आप महज़ भीड़ बताते हैं, बताएं। लेकिन इससे पहले अपने गिरेबान में भी तो झांकें और अपनी क़मीज़ भी तो देखें कि वह कितनी दाग़दार और मैली है। लालू यादव को मुसलमानों की भी ख़ूब फ़िक्र है। लोकपाल विधेयक में वे अल्पसंख्यकों या यों कहें कि मुसलमानों को आरक्षण दिए जाने की पुरज़ोर वकालत कर रहे थे। लेकिन इन्हीं लालू प्रसाद को तब मुसलमानों की सुध नहीं आई जब सात साल पहले बिहार में रामविलास पासवान ने मुसलमान मुख्यमंत्री की शर्त पर उनकी पार्टी को समर्थन देने की बात कही थी। लेकिन तब राबड़ी देवी के नाम पर ही लालू अड़ गए थे। लालू अगर मान गए होते तो बिहार में नीतीश कुमार सत्ता में नहीं आते। लेकिन पार्टी को अपनी बपौती मान बैठे लालू को तब पार्टी में कोई मुसलमान नेता नज़र नहीं आया था। वे सत्ता को अपने पास ही रखना चाहते थे और राबड़ी देवी को हर हाल में मुख्यमंत्री बनवना चाहते थे। नतीजा आज सबके सामने है- न ख़ुदा ही मिला, न विसाले सनम। बिहार में सत्ता से बाहर तो हुए ही, दिल्ली में भी उनकी पूछ कम हुई। मुसलमानों की अनदेखी का नतीजा ही है यह कि लालू आज न सिर्फÞ बिहार में सत्ता से बेदख़ल हुए बल्कि केंद्र में अब वे विदूषक की भूमिका में नज़र आ रहे हैं। तब कांग्रेस लालू के साथ बिहार में ताल से ताल मिलाने का खेल खेल कर रही थी। तब कांग्रेस पार्टी ने दिग्विजय सिंह को बिहार का प्रभारी बना रखा था। आज मुसलमानों की मसीहा बने बैठे ठाकुर दिग्विजय सिंह ने रामविलास पासवान की मांग को अव्यवहारिक कहा था। आज वे मुसलमानों को लुभाने के लिए हर खेल खेल रहे हैं। लेकिन मुसलमानों के लिए किया जा रहा यह सारा तमाशा किसी ‘विधवा विलाप’ से ज्Þयादा कुछ नहीं है।
लोकसभा में भ्रष्टाचार पर लालू प्रसाद यादव को देखते-सुनते हुए यह लग रहा था कि वे उन लोगों की भाषा बोल रहे हैं जो नहीं चाहते हैं कि देश में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सके। कभी लालू मंडल-मसीहा के तौर पर जाने जाते थे। लेकिन आज उनकी भूमिका बदल गई है। वे उनकी हिमायत में खड़े हैं जो देश को लूटने का काम कर रहे हैं। वे बिना किसी लाग-लपेट के उन लोगों के पक्ष में खड़े दिखाई देते हैं जो करोड़ों का भ्रष्टाचार कर रहे हैं। इनमें सियासतदां भी है और नैौकरशाह भी, बिचौलिए भी हैं और बाबुओं की जमात भी। संसद में लोकपाल पर बोलते हुए वे इन लोगों के नायक के तौर पर उभरे। जबकि इससे पहले यही वह तबक़ा था जो उनके गंवई अंदाजÞ पर उनका मज़ाक उड़ाया करता था। लालू यादव ने बिना किसी लाग-लपेट के कहा कि अगर पार्टियों ने विप जारी नहीं किया तो इस विधेयक को पांच फीसद सांसदों का समर्थन भी शायद ही मिले। लेकिन   आमतौर पर उनकी बात पर टीका-टिप्पणी करने वाले सांसदों में से किसी ने भी सदन में लालू यादव की इस बत का खंडन करने की कोशिश नहीं की। ज़ाहिर है कि उनका मौन समर्थन उन्हें था और लालू वही बोल रहे थे जो वे चाह रहे थे। लेकिन लोकपाल विधेयक को फांसी घर बोलते हुए लालू यह भूल गए कि संसद से बाहर भी एक दुनिया है। वह दुनिया आम लोगों की दुनिया है, जो हर पांच साल बाद अपनी दुनिया में हर नेता को अपनी शर्तों पर खड़े होने की इजाज़त देता है। अण्णा हज़ारे इसी दुनिया की अगुआई कर रहे हैं। अगले चुनाव में हमें आपका इंतजÞार रहेगा लालू यादव जी।

 

Monday, October 22, 2012

हार पर माथापच्ची


मंजू मल्लिक मनु
टिहड़ी लोकसभा सीट का उपचुनाव गवाने के बाद प्रदेश कांग्रेस में उबाल है। मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की परेशानी भी इससे बढ़ी है क्योंकि एक तरफ तो पार्टी ने सीट गंवाया है तो दूसरी तरफ अपने बेटे को वे जितवाने में नाकाम रहे। प्रदेश के कद्दावर नेताओं को दरकिनार कर कांग्रेस आलाकमान ने बहुगुणा के बेटे साकेत को टिकट दिया था। लेकिन साकेत न सीट बचा पाए और न ही साख। जाहिर है कि इससे कांग्रेस में बहुगुणा के विरोधियों को बोलने का मौका मिल गया है। फिलहाल तो उनकी कुर्सी पर खतरा नहीं है लेकिन उनके खिलाफ पार्टी में असंतोष और बढ़ा है। अब पूरी कांग्रेस पार्टी इस हार को लेकर मत्थापच्ची में जुटी है। पार्टी का एक तबका जहां इस हार के लिए अंदरूनी गुटबाजी को वजह बताता है, तो दूसरा गुट हार के लिए बहुगुणा के तौरतरीकों को जिम्मेदार बता रहा है। हाल ही में बहुगुणा के कई फैसलों पर विपक्षी दलों ने ही नहीं खुद कांग्रेस ने भी सवाल उठाया था और इसे हार की बड़ी वजह माना जा रहा है।
पार्टी का एक बड़ा तबका बहुगुणा के कामकाज के तरीके का भी आलोचक रहा है। अब उस गुट को भी बहुगुणा पर हमला करने का मौका मिल गया है। यों कहा जा सकता है कि फिलहाल कांग्रेस में सब कुछ ठीक चल रहा है लेकिन आसार ठीक नहीं लग रहे हैं। सूत्रों की मानें तो बहुगुणा को भी इसका अहसास है और वे विरोधियों को मात देन के लिए पहल से ही पेशबंदी करने में जुट गए हैं। खास कर दिल्ली दरबार में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए वे लगातार केंद्रीय नेताओं से बात कर रहे हैं। बताया जाता है कि टिहड़ी में हार की वजह से दिल्ली में उनके समर्थकों को आलाकमान ने काफी लताड़ा है। खास कर उन लोगों को जिन्होंने साकेत को टिकट दिलाने के लिए लंबी-चौड़ी बातें की थी। पार्टी के प्रदेश प्रभारी चौधरी वीरेंद्र सिंह साकेत को टिकट देने के पक्ष में नहीं थे, लेकिन सोनिया गांधी के करीबी लोगों ने बहुगुणा के लिए लाबिंग की और साकेत टिकट पाने में सफल हो गए। इस हार से ज्यादा बुरी खबर बहुगुणा के लिए यह रही कि सोनिया के दरबार में उनकी पूछ कम हुई है। ऐसे में विरोधी गुट भी उनके खिलाफ सक्रिय हो गया है। कांग्रेस के दिग्गज नेता भी प्रदेश की राजनीति पर नजर रखे हुए हैं लेकिन सियासी पडिंतों का मानना है कि बहुगुणा का संकट अब शुरू हुआ है।
बहुगुणा की परेशानी भीतरी तो है है, बाहरी भी है। बसपा, उत्तराखंड क्रांति दल (पी) और निर्दलीयों के बूते टिकी सरकार पर जब तक समर्थन दे रहे दल भी आंखें तरेरते हैं। साकेत के खिलाफ तो टिहड़ी में उक्रांद (पी) ने अपना उम्मीदवार खड़ा कर बहुगुणा की परेशानी बढ़ाई थी। उक्रांद के इस कदम से दोनों दलों के बीच खटास भी बढ़ा है और जिस तरह से बयान दोनों तरफ से दिए जारहे हैं उससे कड़वाहट कम होने के बजाय बढ़ रही है। ऐसा ही हाल बसबा का भी है। सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में आरक्षण को लेकर बहुगुणा और बसपा में ठनी हुई है। हालांकि बसपा ने सरकार से निकलने की धमकी तो नहीं दी है लेकिन अपने रवैये से वे बहुगुणा की परेशानी जब-तब बढ़ाते रहे हैं।
टिहरी लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस की हार पर केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री हरीश रावत हैरत में हैं। वे कहते हैं कि पार्टी ने बहुत संगठित तरीके से चुनाव लड़ा फिर भी हम क्यों हारे इसका पता लगाया जाएगा। खास तौर से देहरादून जिले में कांग्रेस के पिछड़ने पर उन्होंने हैरत है। दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस चौदह में से नौ विधानसभा सीटों पर पिछड़ी। जबकि दिग्गज नेताओं और अभिनेताओं ने साकेत के लिए वोट मांगे थे। रावत ने कहा कि पार्टी की ओर से बहुत संगठित तरीके से चुनाव लड़ा गया। हम एकजुट भी थे। लेकिन किन कारणों से हम हारे यह आश्चर्यजनक है। खास तौर से देहरादून की तरफ हमें वोट क्यों नहीं मिले यह बात समझ में नहीं आई जबकि दूर-दराज के इलाकों में हम जीते हैं। उन्होंने कहा कि हार के इन कारणों की तह में जाने की जरूरत है। हम इसका पता लगाएंगे। उन्होंने कहा कि हमारी जो कमियां हैं उन्हें भी हम मिल कर दूर करेंगे।
 यह पूछे जाने पर कि क्या पार्टी की यह हार इस बात का संकेत तो नहीं है कि उत्तराखंड में आगामी लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के का पत्ता साफ हो सकता है, रावत ने कहा कि इस नतीजे को ऐसा संकेत नहीं माना जाना चाहिए। अगर हम कुछ गलतियां कर रहे हैं तो उन गलतियों को सुधारेंगे। उन्होंने इसे केंद्र और राज्य की कांग्रेस सरकार के खिलाफ जनादेश मानने से भी इनकार किया। रावत ने कहा कि यह तो स्पष्ट है कि जनता का रुझान भाजपा की तरफ नहीं है। अगर हार-जीत का अंतर देखें तो 20-22 हजार वोटों से हुई जीत को जनता का रुझान भाजपा की ओर होने का संकेत कतई नहीं माना जा सकता। बहरहाल, रावत जो भी कहें कांग्रेस के लिए यह खतरे की घंटी तो है ही लेकिन उससे ज्यादा विजय बहुगुणा के लिए परेशानी का सबब है उपचुनाव का नतीजा।

Friday, September 14, 2012

बिहार में नए राजनीतिक दल के गठन की जमीन तैयार




फÞज़ल इमाम मल्लिक

नीतीश कुमार भले अगले चुनाव में देश का प्रधानमंष्ठाी बनने का सपना पाल रहे हों, लेकिन सच यह है कि अब बिहार में ही उनके खिलाफ असंतोष बढ़ रहा है। विपक्षी दलों की बात तो जाने दें, उनकी अपनी पार्टी जद (एकी) में भी उनके रवैये को तानाशाह बताने वाले अब कम नहीं हैं। कुछ नाराज नेताओं ने तो बाकायदा बिहार नव निर्माण मंच बना कर नीतीश को चुनौती भी दे डाली है। इनमें नीतीश के पिछड़े तबके के नेता ही ज्यादा हैं। नई दिल्ली के मालवंकर हाल में आयोजित एक सम्मेलन में नीतीश कुमार के निरंकुश रवैये के खिलाफ इन नेताओं ने खुल कर अपनी बात कही। सांसद मंगनी लाल मंडल, उपेंद्र कुशवाहा, पूर्व सांसद डा. अरुण कुमार, ब्रह्मदेव पासवान, पूर्व विधायक सतीश कुमार, सुधांशु शेखर भास्कर, पूर्व मंत्री लुतुफुर रहमान, शंकर आजाद, संजय वर्मा, शिवकुमार सिंह, रामबलि चंद्रवंशी, पूर्व सांसद ब्रह्मदेव पासवान सरीखे नेताओं की मौजूदगी में आर्थिक विशलेषक नवल किशोर चौधरी ने बिहार की उस तस्वीर को सामने रखा जो लोगों की आंखों से ओझल है। ‘बिहार का सच’ के तहत आयोजित इस सम्मेलन में दिल्ली के साथ-साथ बिहार के लोगों की शिरकत से भी बिहार नव निर्माण मंच का उत्साह बढ़ा है और अगर सूत्रों की मानें तो अब जल्द ही मंच को राजनीतिक दल की शक्ल दे दी जाएगी। नीतीश के करीबी सूत्रों के मुताबिक इस सम्मेलन के बाद नीतीश की पेशानी पर भी बल पड़ गए हैं और वे जोड़तोड़ की कवायद में जुट गए हैं। हास्यास्पद बात तो यह रही कि जद (एकी) अध्यक्ष शरद यादव ने सम्मेलन के दूसरे दिन मंगनी लाल मंडल और उपेंद्र कुशवाहा को पार्टी से निलंबित करने की घोषणा कर दी। पत्रकारों ने इस सम्मेलन को लेकर जब उनसे सवाल किए तो उन्होंने दोनों सांसदों को सस्पेंड करने का फिर फरमान सुना डाला जबकि इन दोनों नेताओं को बहुत पहले ही पार्टी निलंबित कर दिया गया था।
बिहार नव निर्माण मंच के संयोजक और जद (एकी) के राज्यसभा सदस्य उपेंद्र कुशवाहा फिलहाल ज्यादा आक्रामक हैं। उनका आरोप है कि बिहार में कानून-व्यवस्था की स्थिति लगातार बद से बदतर हो रही है। भले नीतीश कुमार सुशासन का ढोल बजा रहें हों। उन्होंने सूबे में आर्थिक बदहाली का भी आरोप लगाया। बकौल कुशवाहा तस्वीर कृषि और शिक्षा के क्षेत्र में भी नहीं बदली है। बिहार के मौजूदा राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक परदिृश्य के मद्देनजर ही सम्मेलन का आयोजन किया गया था।
वैसे यह बात भी सच है कि सदस्यता छिन जाने के डर से ज्यादा लोग खुल कर सामने नहीं आ पा रहे हों, लेकिन हकीकत यही है कि पार्टी के आधे से ज्यादा सांसद नीतीश से नाराज हैं। लेकिन दिक्कत यह है कि जो जुबान खोलने की कोशिश करता है, नीतीश उसी पर अनुशासन का चाबुक चला देते हैं। पार्टी में किसी विधायक या सांसद तो दूर मंत्री तक को अपनी बात रखने की आजादी नहीं है। एक तरह से जद (एकी) में नीतीश ने अधिनायकवाद कायम कर दिया है। कुशवाहा नीतीश के खिलाफ अकेले नहीं हैं, उनके साथ पिछड़ी जाति के सांसद मंगनीलाल मंडल भी हैं। इनके अलावा सतीश कुमार, प्रो. रामबलि चंद्रवंशी भी मंच के साथ हैं। जातीय समीकरण भी मंच के नेताओं ने बैठाने की पूरी कोशिश की है। सवर्णों का एक बड़ा तबका भी मंच से जुड़ रहा है। पूर्व सांसद और मंच के नेता अरुण कुमार ने बाकायदा आंकड़ों के साथ आरोप लगाया कि बिहार में कानून का राज नहीं बचा है। अपराध की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। महिलाएं भी सुरक्षित नहीं हैं। होंगी भी कैसे, जब सरकार ही बलात्कारियों को बचाने में लगी हो।
मशहूर अर्थशास्त्री नवल किशोर चौधरी ने बिहार के विकास को आंकड़ों की बाजीगरी बताते हुए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर कड़ा प्रहार किया। उन्होंने कहा कि बिहार में मंत्रिपरिषद का शासन नहीं चल रहा है बल्कि कुछ चुने हुए सचिवों की सरकार चल रही है जिसके मुखिया नीतीश कुमार हैं। चौधरी ने कहा कि एक तरफ नीतीश कुमार बिहार में करीब पंद्रह फीसद सकल घरेलु उत्पाद (जीडीपी) का दावा करते हैं जबकि बिहार में प्रतिव्यक्ति सालाना आय 13 हजार रुपए ही है। नीतीश कुमार भले यह दावा करें लेकिन सच्चाई इतना है कि बिहार में विकास के नाम पर सिर्फ तमाशा हुआ है। चौधरी कहते हैं कि कि नीतीश कुमार पहले बिहार सरकार के मुखिया बने, फिर सरकार बने और अब वे राज्य बन गए हैं। यब स्थिति खतरनाक है। इसके खिलाफ जनांदोलन खड़ा करने की जरूरत है।
मंच के संरक्षक और जद (एकी) सांसद मंगनी लाल मंडल ने नीतीश के जादुई आंकड़ों को छलावा बताते हुए कहा कि सच तो यह है कि हम ऊपर से नहीं नीचे से पहले नंबर पर हैं। उन्होंने कहा कि बिहार में सरकार ने शिक्षा को धंधा बना दिया है और गांव-गांव में शराब की दुकानें खुलवा कर लोगों को बीमार और अपंग बनाने का काम कर रही है। उन्होंने नीतीश सरकार पर गंभीर आरोप लगाए और कहा कि इस सरकार के कार्यकाल में झूट का मुलम्मा चढ़ा कर विकास की बातें की गई हैं जबकि अभी भी बिहार में भय, भूख और गरीबी का साम्राज्य है। अरुण कुमार इसे आगे बढ़ाते हैं और कहते हैं कि भय, भूख और बेरोजगारी हर तरफ है और पलायन आज भी जारी है।
दरअसल नीतीश कुमार को लेकर एक आम छवि जो बनी या   बनाई गई है उसे इस सम्मेलन के जरिए तोड़ने की कोशिश भी की गई। खास कर बिहार में इस तरह के किसी कार्यक्रम का आयोजन करना अब संभव नहीं है क्योंकि बिहार में नीतीश अपने तरीके से शासन चला रहे हैं। इसलिए अब सवाल यह भी उठ रहा है कि बिहार में विकास की जो बातें की जा रही हैं वह किनके लिए है। नब्बे फीसद लोगों के लिए या दस फीसद लोगों के लिए।
 सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे मंच के समयोजक और राज्यसभा सदस्य उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि बिहार में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विकास के दावे कर रहे हैं और बिहार में लोग कुपोषण और भूख से मर रहे हैं। नीतीश सरकार के कार्यकाल में किसानोंं की स्थिति दिनों-दिन खराब होती जा रही है। कुशवाहा ने कहा कि किसानोंं के हितों को ध्यान में रख कर राज्य सरकार लारा तैयार किया गया कृषि रोड मैप एक छलावा साबित हो रहा है और इससे किसानोंं को कोई फायदा नही मिल पा रहा है। किसानोंं की स्थिति पहले से भी बदत्तर हो गयी है और उनके नाम पर जिन योजनाओं का संचालन किया जा रहा है उसकी राशि बिचौलिए लूट रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस सरकार में किसान अधिक परेशानी में है जबकि सरकार उनकी उन्नति का दावा कर रही है। धान की खरीद के आंकड़ों की चर्चा करते हुए उन्होंने सरकारी दावे को झूठ का पुलिंदा बताया और कहा कि सरकार को यह बताना चाहिए कि किसानों से अबतक धान की कितनी खरीद की गयी है।
पूर्व विधायक सतीश कुमार ने आंकड़ों के साथ नीतीश कुमार के शासन में बढ़ते अपराध का जिक्र किया तो मंच के सह संयोजक शंकर आजाद ने कोशी में आई बाढ़ में सरकार की नाकामी को बयान करते हुए वहां किए जा रहे लूट का ब्योरा दिया। इनके अलावा पुर्व मंत्री लुतुफुर रहमान, पूर्व विधायक सुधांश शेखर भास्कर, फिल्मकार किरणकांत वर्मा, संजय वर्मा, शिवकुमार सिंह, रामबली चंद्रवंशी, पुर्व सांसद ब्रह्मदेव पासवान ने भी अपना बात रखी। दिल्ली में इस सम्मेलन में जिस तरह लोगों में उत्साह था उससे बिहार नव निर्माण मंच से जुड़े लोगों का भी हौसला बढ़ा है। सूत्रों की मानें तो अक्तूबर में मंच के बैनर तले बिहार में अतिपिछड़ों, दलित-महादलित और अल्पसंख्यकों का सम्मेलन होगा। दरअसल राजनीति में पैठ बनाने के लिए जाीतय समीकरण बनाना जरूरी है और उसी दिशा में मंच ने पहल करने की सोची है। इन सम्मेलनों के बाद मंच राजनीतिक दल के गठन पर गंभीरता से विचार कर रहा है। सूत्रों की मानें तो अगले साल के शुरुआत में नई राजनीति पार्टी वजूद में आएगी और पटना के गांधी मैदान से नीतीश कुमार के ‘सुशासन’ के खिलाफ इस नई पार्टी के मंच से शंखानाद फूंका जाएगा। इस बात के आसार भी नजर आ रहे हैं कि बिहार में मंच तीसरे मोर्चे की कवायद में जुटेगा और नए राजनीतिक विकल्प देने के लिए वह बिहार में एनडीए और यूपीए से अलग कोई अलग गठबंधन बनाए।

Friday, August 10, 2012

नीतीश सरकार का कृषि रोड मैप एक छलावा : कुशवाहा



बिहार नव निर्माण मंच के संयोजक सांसद उपेंद्र प्रसाद कुशवाहा ने आरोप लगाया कि नीतीश सरकार के कार्यकाल में किसानोंं की स्थिति दिनों-दिन खराब होती जा रही है। कुशवाहा ने कहा कि किसानोंं के हितों को ध्यान में रख कर राज्य सरकार द्वारा तैयार किया गया कृषि रोड मैप एक छलावा साबित हो रहा है और इससे किसानोंं को कोई फायदा नही मिल पा रहा है। उन्होंने कहा कि मंच की ओर से पूरे प्रदेश में २० जून से चलाए जा रहे संपर्क यात्रा के दौरान जगह-जगह किसानोंं ने उनसे मिलकर अपनी समस्याओं से अवगत कराया है।
सांसद ने कहा कि किसानोंं की स्थिति पहले से भी बदत्तर हो गयी है और उनके नाम पर जिन योजनाओं का संचालन किया जा रहा है उसकी राशि बिचौलिए लूट रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस सरकार में किसान अधिक परेशानी में है जबकि सरकार उनकी उन्नति का दावा कर रही है। धान की खरीद के आंकड़ों की चर्चा करते हुए उन्होंने सरकारी दावे को झूठ का पुलिंदा बताया और कहा कि सरकार को यह बताना चाहिए कि किसानों से अबतक धान की कितनी खरीद की गयी है। कुश्वाहा ने कहा कि राज्य सरकार की ओर से किसानों को घटिया बीज उपलब्ध कराया जा रहा है जिससे उन्हें नुकसान हो रहा है और उत्पादकता प्रभावित हो रही है। उन्होंने कहा कि संपर्क यात्रा के दौरान किसानों ने अरवल जिले में उन्हें सरकार की ओर से दिए गए मूंग की बीज को दिखाया और कहा कि इन बीजों से पौधे पूरी तरह से विकसित नही हो पा रहे है। इसी तरह किसानों को खाध की समस्या से भी जूझना पड़ रहा और उन्हें अधिक राशि देकर कालाबाजारियों से खरीदना पड़ रहा है।
 कुशवाहा ने मंच की भावी राजनीति की चर्चा करते हुए कहा कि १५ जुलाई से संपर्क यात्रा का दूसरा चरण मुजफरपुर से प्रारंभ किया जाएगा और इस दौरान मंच के नेता गांव-गांव जाकर लोगों की समस्याओं और किसानों की परेशानियों का आकलन करेंगे।    मंच के नेता शंकर आजाद और संजय वर्मा का मानना है कि नीतीश के शासनकाल में अपराध का ग्राफ लगातार बढ़ा है। हाल ही में पटना में छात्रा के साथ सामुहिक बलात्कार की घटना हुई, फिर सीवान के एक थाने में महिला के साथ सामुहिक बलात्कार हुआ। अपहरण, हत्या, लूट की घटनाओं में इजाफा हुआ है ओर नीतीश सुशासन का राग अलाप रहे हैं। आजाद ने इस बात पर हैरत जताई कि हाल ही में चारा घोटाले में हाई कोर्ट ने निर्देश दिया कि सीबीआई नीतीश कुमार की संलिप्तता पर भी विचार करे लेकिन किसी अखबार ने इस खबर को नहीं छापी। उन्होंने कहा कि बिहार में पत्रकारिता नीतीश के हाथों बिक गई है।

Saturday, August 4, 2012

नीतीश के खिलाफ जद (एकी) सांसदों की लामबंदी





नीतीश कुमार के खिलाफ  अब बगावत के सुर बुलंद होने लगे हैं। उनकी ही पार्टी के विधायक-सांसदों में गुस्सा है। जो संकेत मिल रहे हैं उससे तो यह पता चलता है कि गुस्सा आने वाले दिनों में और बढ़ेगा। दरअसल नीतीश कुमार के सुशासन का भ्रम अब टूट रहा है और उनका जादू उतार पर है। हालांकि अख़बारों के ज़रिए वे इस भ्रम को बनाए रखने की कोशिश में लगे हैं, लेकिन आम लोगों में भी यह संदेश जा रहा है कि बिहार में नीतीश कुमार ने मीडिया को ‘मैनेज’ कर रखा है। बिहार में कैग की हालिया रिपोर्ट के बाद नीतीश के सुशासन पर सवाल उठने लाजिमी थे। लेकिन इसे लेकर ही जद (एकी) का एक धड़ा लामबंद हो गया है। हाल ही में बिहार नव निर्माण मंच नाम की एक सामाजिक संस्था ने राज्य के सभी जिला मुख्यालयों पर एक दिन का सांकेतिक धरना देकर नीतीश कुमार की नीतियों पर सवाल खड़ा किया। धरना की वजह कैग की वह रिपोर्ट ही बनी है, जिसमें नीतीश सरकार की खामियों का उल्लेख किया गया है। सरकार की नीतियों के खिलाफ धरना-प्रदर्शन कोई नई बात नहीं है लेकिन हैरत इस बात को लेकर है कि जद (एकी) से जुड़े कार्यकर्ताओं ने ही नीतीश पर हल्ला बोला है। बिहार नव निर्माण मंच का गठन जद (एकी) सांसद मंगनीलाल मंडल, उपेंद्र कुश्वहा, पूर्व सांसद अरुण कुमार, बिहार में मंत्री रहे लुतफुर रहमान, शंकर आजाद, पूर्व विधायक सुधांशु शेखर भास्कर और संजय वर्मा के साथ मिल कर किया है। जाहिर है कि नीतीश कुमार के लिए यह परेशानी का सबब बनेगा। धरने-प्रदर्शन से पहले मंच ने बोध गया में तीन दिनों का चिंतन शिविर लगाया थ। बिहार नवनिर्माण मंच के इस शिविर के अंतिम दिन जद (एकी) के सांसद कैप्टन जयनारायण निषादके शामिल होने से राजनीतिक हलकों में जो संदेश गया है, उससे जाहिर है कि नीतीश कुमार की परेशानी बढ़ी होगी। खबरों में बिहार की सूरत और सीरत बदलने की बात भले की जा रही हो लेकिन अभी बिहार में बहुत बड़ा बदलाव नहीं हुआ है। कैग के ताजा रिपोर्ट से भी ये तथ्य सामने आए हैं कि बिहार में सुशासन सिर्फ मुख्यमंत्री के भाषण तक ही सीमित है और भ्रष्टाचार की जड़ें कहीं गहरी हैं। इन सबका नतीजा ही है कि नीतीश कुमार को घेरने के लिए बिहार में गोलबंदी शुरू हो गई है। दिलचस्प बात यह है कि इस गोलबंदी में विपक्ष से ज्यादा सक्रिय उनकी पार्टी के सांसद और विधायक ही हैं। तीन सांसदों और एक पूर्व सांसद के खुल कर सामने आने के बाद नीतीश के सामने चुनौती कठिन दिख रही है।
कैग की रिपोर्ट में नीतीश सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं। गड़बड़ियां हर क्षेत्र में हुई हैं। सड़कों के निर्माण से लेकर स्कूल कालेजों तक में। कैग ने जो रिपोर्ट जारी की है उसमें इस बात का साफ उल्लेख है कि सरकार ने एसी और डीसी बिलों को अब तक जमा नहीं किया है। इसी का नतीजा था कि इस साल 31 मार्च को बिहार की तमाम ट्रेजरियां बंद हो गईं थी। इस रिपोर्ट में बिहार के उपकुलपतियों पर भी गंभीर आरोप हैं। कैग के मुताबिक छात्रों से फीस के नाम पर वसूले गए पैसे विश्वविद्यालयों के कुलपति डकार गए हैं।
जद (एकी) नेताओं ने बोधगया में जो फैसले किए उसके मुताबिक नीतीश के कथित सुशासन के खलाफ आवाज बुलंद करने औप गड़बड़ियों, कार्य गुजारियों को आम लोगों तक पहुंचाया जाए। शिविर में इस बात पर भी एकराय बनी कि अक्टूबर-नवंबर में पटना के गांधी मैदान में विशाल रैली का आयोजन किया जाए, जिसमें सभी जाति, धर्म, वर्ग के लोग शामिल हों और तीसरा यह कि नीतीश के खिलाफ सिर्फ सामाजिक स्तर पर ही नहीं बल्कि राजनीतिक स्तर पर भी लड़ाई लड़ने की जरूरत है। इसके लिए मजबूत राजनीतिक संगठन या दल का गठन करना पड़े तो किया जाए। हालांकि राजनीतिक दल बनाने का जोखिम फिलहाल कोई मोल नहीं लेना चाहेगा क्योंकि ऐसी स्थिति में संसद की सदस्यता जाने का खतरा है। लेकिन जो उम्मीद नजर आरही है उसे देखते हुए तो यह लगता है कि नीतीश के तानाशाही रवैये से उनकी पार्टी में ही एक बड़ा तबका खफा है। जातीय राजनीति की जड़ों को गहरा करने वाले नीतीश की काट में अब इसी जातीय राजनीति का सहारा लेना पड़ा तो दिग्गज समाजवादी इससे भी गुरेज नहीं करेंगे। जाहिर है कि यह स्थिति नीतीश के मन माफिक नहीं है और कैग की रिपोर्ट ने भी उनकी पेशानी पर बल डाल दिए हैं।
बिहार नव निर्माण मंच के तीन दिवसीय चिंतन व प्रशिक्षण शिविर का लब्बोलुआब यह था कि जंगलराज से छुटकारा के लिए जिन नेताओं, कार्यकत्ताओं ने संघर्ष किया उसे नीतीश ने हाशिए पर डाल दिया है। अच्छे दिन आए तो जंगलराज में भी सत्ता का सुख भोगने वालों को पार्टी मेंं शामिल कर नीतीश कुमार तानाशाह बन गए। लोगों का मानना है कि पूरे राज्य की स्थिति अराजक बनी हुई है, लेकिन मीडिया में सूबे का चेहरा चकाचक बना है। दैनिक अखबारों और अधिकांश चैनलों में नीतीश का अघोषित सेंसरशिप लगा है। नीतीश सरकार की सच्चाई लिखने वाले अखबार का विज्ञापन बंद हो जाता है और लिखने वाले पत्रकार को नौकरी से हटा दिया जाता है या दूर दराज तबादला कर दिया जाता है।
सांसद मंगनी लाल मंडल का मानना है कि भारत सरकार के पैसे का बिहार सरकार के पास कोई लेखाजोखा नही है। सूबे में कुपोषण सबसे   बड़ी समस्या है और राज्य सरकार साइकिल, पोशाक और रेडियो बांट रही है। जंगलराज से मुक्ति का भरोसा देकर जिसे मुख्यमंत्री बनाया वे कुशासन के द्योतक बने हुए हैं। मंडल का कहना है कि कैग ने सरकार की आर्थिक अनियमितताओं की पोल खोल दी है। केंद्र सरकार जितनी राशि दे रही है उसका उपयोग नहीं हो रहा है। राज्यसभा सदस्य उपेंद्र कुशवाहा भी इससे सहमत दिखे। उनका मानना है कि सूबे की सरकार किसानों, छात्रों और आम जनों की हित से हटकर अपना एजेंडा लागू कर रही है।  मनरेगा के नाम पर लूट हो रही है। राज्य के सभी शैक्षणिक संस्थानों स्थिति अराजक है। विकास दर के झूठे आकंड़ों को पेश कर सरकार जनता को गुमराह कर रही है। उन्होंने कहा कि बिहार में सचिवों का राज चल रहा है और सचिवों के महासचिव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं। पार्टी के इन नेताओं ने कैग से उपजे सवालों के बीच इन घोटालों की जांच सीबीआई से कराने की मांग कर नीतीश की मुश्किलें बढ़ा दी हैं।
दूसरी तरफ, पूर्व सांसद अरूण कुमार ने कहा कि नीतीश सरकार बिहार की जनता के साथ खिलवाड़ कर रही है। जब पार्टी के अंदर लोकतंत्र नही है तो लोकहित में कोई बात हो ही नहीं सकती। इस सरकार ने राज्य के सभी लोकतांत्रिक संस्थाओं को नष्ट कर दिया है। लोकशाही का महत्वपूर्ण अंग शिक्षा का सवर्नाश किया जा रहा है। प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक की स्थिति अराजक बनी हुई है। नियुक्ति की प्रक्रिया को बदलकर गलत प्रणाली अपना ली गयी है। सरकार खुद स्वीकार कर रही है कि शिक्षकों की नियुक्ति में पचास हजार जाली है। सूबे में मॉल व विल्डरों की संस्कृति पनप रही है, जो मुट्ठी भर लोगों के लिए है और राजनीति इसकी दासी बनी है। अरूण कुमार ने कहा कि लोकतंत्र की स्थापना के लिए हम ने एकजुट होकर संघर्ष किया और उसका परिणाम तानाशाह निकला। सरकार के कई योजनायें भ्रष्टाचार की शिकार बनी है और उसमें राजद के लुटेरों का सहयोग लिया जा रहा है। उन्होंने इस मामले पर चुटकी लेते हुए कहा कि 1, अणे मार्ग में एक तालाब है जिसमें डुबकी लगाने से पूर्व के शासन में दागी रहे नेता भी पवित्र होकर सरकार का गुणगान करने में जुट जाते है। शंकर आजाद और संजय वर्मा का मानना है कि बिहार में सभी दैनिक अखबार तथा अधिकांश चैनल नीतीश कुमार के हाथों बिके हुए हैं और नीतीश विज्ञापन की राजनीति कर इन अखबारों और चैनलों पर दवाब बनाये रहते हैं। पिछले छह-सात सालों में विपक्ष की कोई भी खबर इन अखबारों में प्रमुखता से नही छपी, इससे नीतीश कुमार की नीयत और नीति को अच्छी तरह समझा जा सकता है। आने वाले समय में नीतीश कुमार के अखबारों में चकाचक बिहार की पोल खुलेगी और उनकी खुशफहमी को जनता दूर कर देगी। जद (एकी) सांसद कैप्टन जय नारायण प्रसाद निषाद भी मानते हैं कि इस सरकार में कार्यकताओं का हक मारा जा रहा है। फिलहाल तो जद (एकी) के तीन सांसद खुल कर सामने आ गए हैं लेकिन जो हालात हैं और पार्टी नेताओं में जिस तेजी से विरोध के स्वर उभर रहे हैं उसे देखते हुए लगता है कि जल्द ही कुछ और बड़े नाम विरोधी गुट से जुड़ेंगे। राजनीतिक विशलेषकों की बात मानें तो जद (एकी) और भारतीय जनता पार्टी के कम से कम दो दर्जन विधायक बिहार नव निर्माण मंच के बैनर तले आकर नीतीश की तानाशाही के खिलाफ अलख जगाएंगे। हालांकि अभी इनमें से ज्यादातर खुल कर सामने नहीं आना चाहते हैं लेकिन ये सभी मंच के दिग्गज नेताओं के संपर्क में हैं। वैसे मंच के नेताओं ने विकल्प के तौर पर एक राजनीतिक दल के गठन पर गंभीरता से विचार कर रहा है। सूत्रों की मानें तो इसके लिए कई नाम भी सुझाए गए हैं और चुनाव आयोग से भी संपर्क साधा जा रहा है। कयास यह लगाए जा रहे हैं कि अगले साल के मध्य तक इस पार्टी की बाजाब्ता घोषणा कर दी जाएगी।

Friday, August 3, 2012

Bihar government faces wrath for introducing religious, controversial textbooks in schools

Patna: Even before the State government could recover from the jolt of BIADA land allotment scam, it has been once again stung by the controversy generated by introduction of books on Rashtriya Swayamsevak Sangh founder Keshav Baliram Hedgewar, Hinduism and Godhra riots in the school syllabus.
The entire controversy was stoked up by the fact that Central government funds were used by the Bihar government led by Nitish Kumar to purchase these books for secondary schools. The move has placed the secular image of Nitish Kumar and the ruling alliance in the state under the scanner.
It has been alleged that these school books have the contents like biography of the RSS founder Keshav Baliram Hedgewar, Hinduism and Godhra riots.
Rajya Sabha member and Convener of the Bihar Nav Nirman Manch , Upendra Kushwaha came up with the allegations while addressing a press conference on Sunday.
He said, “This is a move to propagate RSS agenda in each village and that too with the government fund. On one side he dismisses dinner invitation to Narendra Modi on the other he shakes hands with him.”
Making a sharp criticism, Kushwaha said, “My advise to Nitish is that he should join BJP and propagate RSS ideology openly,” adding that a meeting of Bihar Nav Nirman Manch would be held on August 7 to make strategies to oppose the issue.
Kushwaha said that the issue of using government fund for purchasing RSS books came in light when Prabhat Publication sent the bills for books to the Deputy Development Commissioner of Sheohar.
Among those present in the press conference were former MP Arun Kumar, Shameem Raza and Rajesh Yadav.
It should be noted that Human Resources Development Department had allotted a fund of Rs 1 lakh to each of the secondary schools in the state to purchase study material.

JD-U rebels to float new front

PATNA: JD (U) rebels have decided to float an apolitical front, Bihar Nav Nirman Manch, and hold its convention on August 21 to decide their future course of action.
Former JD (U) general secretary Upendra Kushwaha has been made convener of the Manch. He said they would not sever ties with JD (U) despite having been suspended from the party. "But we will not remain a mute spectator to the anarchic situation in the party as well as the state," Kushwaha, a Rajya Sabha member, told TOI on Tuesday and blamed chief minister Nitish Kumar for all the ills afflicting the party and the state.

BIHAR NAV NIRMAN MANCH


State-level workers meeting of Bihar Navnirman Manch was held at SK Memorial Hall in Patna on September 4, 2011. Manch chief Upendra Singh Kushwaha presided over the meeting. Speaking on the occasion, Kushwaha hit out at Nitish Kumar-led government and said the claims made on the development of the state were false. Mangnilal Mandal and Arun Kumar (both MPs) were present in the meeting.

Supreme Court Sets Aside Patna HC's Decision

New Delhi: In a victory for the former Janata Dal-U MP Mangani Lal Mandal, the Supreme Court on Wednesday set aside a Patna High Court order quashing his election from Jhanjharpur constituency after it was discovered Mandal had failed to disclose his first wife's assets while filing his nomination papers.
"The High Court failed to clarify how the non-disclosure of his wife's property impacted the election results," the Supreme Court bench comprising Justice R. M. Lodha and Justice S. J. Mukhopadhyaya said.
As reported previously, the Patna High Court on November 25, 2011 had set aside Mandal's election following a petition filed by one Vishnudeo Bhandari.
Bhandari, in his petition, had claimed that the former JD-U leader who later walked out of the party only to join hand with Upendra Kushwaha's Bihar Navnirman Manch had failed to disclose his first wife's property in 2009 Parliamentary elections.
The Supreme Court also imposed a fine of Rs. 1 lakh on Bhandari to cover court fees and other expenses.

Bihar Navnirman Manch form to fight against Corruption of Nitish Kumar Jungle Raj


Janata Dal (United) leader and Rajya Sabha member Upendra Singh Kushwaha, former MPs Ejaj Ali and Arun Kumar and  JD(U) MP Mangni Lal Mandal, Shanker Azad and Sanjay Verma jointly floated a new Morcha Bihar Navnirman Manch (BNM) in Patna on June 21, 2011. Upendra Singh Kushwaha has been made convener of the Manch. The new party has decided to launch agitation against corruption, bureaucratism and degradation of democratic values in Bihar. The party will also host a state-level workers convention at SK Memorial Hall in Patna on August 21.

Bihar Navnirman Manch to launch agitation

Bihar Navnirman Manch convener and Rajya Sabha member Upendra Kushwaha said his party would launch agitation from Panchayat to state headquarters in protest against the anti-people policy of the Bihar Government and corruption. Kushwaha was talking to reporters after four-day meeting of the Manch in Patna on September 28, 2011.

Bihar Navnirman Manch demands CBI probe into BIADA land scam

Bihar Navnirman Manch activists staged a day-long dharna demanding CBI probe into the BIADA land and fertiliser scams, in Patna on October 11, 2011.

CBI probe into BIADA land scam demanded

Bihar Nav Nirman Manch activists staged demonstration demanding CBI probe into the BIADA land scam in Patna on July 27, 2011.

Bihar Navnirman Manch holds state-level workers meet in Patna

State-level workers meeting of Bihar Navnirman Manch was held at SK Memorial Hall in Patna on September 4, 2011. Manch chief Upendra Singh Kushwaha presided over the meeting. Speaking on the occasion, Kushwaha hit out at Nitish Kumar-led government and said the claims made on the development of the state were false. Mangnilal Mandal and Arun Kumar (both MPs) were present in the meeting.