Friday, September 14, 2012

बिहार में नए राजनीतिक दल के गठन की जमीन तैयार




फÞज़ल इमाम मल्लिक

नीतीश कुमार भले अगले चुनाव में देश का प्रधानमंष्ठाी बनने का सपना पाल रहे हों, लेकिन सच यह है कि अब बिहार में ही उनके खिलाफ असंतोष बढ़ रहा है। विपक्षी दलों की बात तो जाने दें, उनकी अपनी पार्टी जद (एकी) में भी उनके रवैये को तानाशाह बताने वाले अब कम नहीं हैं। कुछ नाराज नेताओं ने तो बाकायदा बिहार नव निर्माण मंच बना कर नीतीश को चुनौती भी दे डाली है। इनमें नीतीश के पिछड़े तबके के नेता ही ज्यादा हैं। नई दिल्ली के मालवंकर हाल में आयोजित एक सम्मेलन में नीतीश कुमार के निरंकुश रवैये के खिलाफ इन नेताओं ने खुल कर अपनी बात कही। सांसद मंगनी लाल मंडल, उपेंद्र कुशवाहा, पूर्व सांसद डा. अरुण कुमार, ब्रह्मदेव पासवान, पूर्व विधायक सतीश कुमार, सुधांशु शेखर भास्कर, पूर्व मंत्री लुतुफुर रहमान, शंकर आजाद, संजय वर्मा, शिवकुमार सिंह, रामबलि चंद्रवंशी, पूर्व सांसद ब्रह्मदेव पासवान सरीखे नेताओं की मौजूदगी में आर्थिक विशलेषक नवल किशोर चौधरी ने बिहार की उस तस्वीर को सामने रखा जो लोगों की आंखों से ओझल है। ‘बिहार का सच’ के तहत आयोजित इस सम्मेलन में दिल्ली के साथ-साथ बिहार के लोगों की शिरकत से भी बिहार नव निर्माण मंच का उत्साह बढ़ा है और अगर सूत्रों की मानें तो अब जल्द ही मंच को राजनीतिक दल की शक्ल दे दी जाएगी। नीतीश के करीबी सूत्रों के मुताबिक इस सम्मेलन के बाद नीतीश की पेशानी पर भी बल पड़ गए हैं और वे जोड़तोड़ की कवायद में जुट गए हैं। हास्यास्पद बात तो यह रही कि जद (एकी) अध्यक्ष शरद यादव ने सम्मेलन के दूसरे दिन मंगनी लाल मंडल और उपेंद्र कुशवाहा को पार्टी से निलंबित करने की घोषणा कर दी। पत्रकारों ने इस सम्मेलन को लेकर जब उनसे सवाल किए तो उन्होंने दोनों सांसदों को सस्पेंड करने का फिर फरमान सुना डाला जबकि इन दोनों नेताओं को बहुत पहले ही पार्टी निलंबित कर दिया गया था।
बिहार नव निर्माण मंच के संयोजक और जद (एकी) के राज्यसभा सदस्य उपेंद्र कुशवाहा फिलहाल ज्यादा आक्रामक हैं। उनका आरोप है कि बिहार में कानून-व्यवस्था की स्थिति लगातार बद से बदतर हो रही है। भले नीतीश कुमार सुशासन का ढोल बजा रहें हों। उन्होंने सूबे में आर्थिक बदहाली का भी आरोप लगाया। बकौल कुशवाहा तस्वीर कृषि और शिक्षा के क्षेत्र में भी नहीं बदली है। बिहार के मौजूदा राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक परदिृश्य के मद्देनजर ही सम्मेलन का आयोजन किया गया था।
वैसे यह बात भी सच है कि सदस्यता छिन जाने के डर से ज्यादा लोग खुल कर सामने नहीं आ पा रहे हों, लेकिन हकीकत यही है कि पार्टी के आधे से ज्यादा सांसद नीतीश से नाराज हैं। लेकिन दिक्कत यह है कि जो जुबान खोलने की कोशिश करता है, नीतीश उसी पर अनुशासन का चाबुक चला देते हैं। पार्टी में किसी विधायक या सांसद तो दूर मंत्री तक को अपनी बात रखने की आजादी नहीं है। एक तरह से जद (एकी) में नीतीश ने अधिनायकवाद कायम कर दिया है। कुशवाहा नीतीश के खिलाफ अकेले नहीं हैं, उनके साथ पिछड़ी जाति के सांसद मंगनीलाल मंडल भी हैं। इनके अलावा सतीश कुमार, प्रो. रामबलि चंद्रवंशी भी मंच के साथ हैं। जातीय समीकरण भी मंच के नेताओं ने बैठाने की पूरी कोशिश की है। सवर्णों का एक बड़ा तबका भी मंच से जुड़ रहा है। पूर्व सांसद और मंच के नेता अरुण कुमार ने बाकायदा आंकड़ों के साथ आरोप लगाया कि बिहार में कानून का राज नहीं बचा है। अपराध की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। महिलाएं भी सुरक्षित नहीं हैं। होंगी भी कैसे, जब सरकार ही बलात्कारियों को बचाने में लगी हो।
मशहूर अर्थशास्त्री नवल किशोर चौधरी ने बिहार के विकास को आंकड़ों की बाजीगरी बताते हुए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर कड़ा प्रहार किया। उन्होंने कहा कि बिहार में मंत्रिपरिषद का शासन नहीं चल रहा है बल्कि कुछ चुने हुए सचिवों की सरकार चल रही है जिसके मुखिया नीतीश कुमार हैं। चौधरी ने कहा कि एक तरफ नीतीश कुमार बिहार में करीब पंद्रह फीसद सकल घरेलु उत्पाद (जीडीपी) का दावा करते हैं जबकि बिहार में प्रतिव्यक्ति सालाना आय 13 हजार रुपए ही है। नीतीश कुमार भले यह दावा करें लेकिन सच्चाई इतना है कि बिहार में विकास के नाम पर सिर्फ तमाशा हुआ है। चौधरी कहते हैं कि कि नीतीश कुमार पहले बिहार सरकार के मुखिया बने, फिर सरकार बने और अब वे राज्य बन गए हैं। यब स्थिति खतरनाक है। इसके खिलाफ जनांदोलन खड़ा करने की जरूरत है।
मंच के संरक्षक और जद (एकी) सांसद मंगनी लाल मंडल ने नीतीश के जादुई आंकड़ों को छलावा बताते हुए कहा कि सच तो यह है कि हम ऊपर से नहीं नीचे से पहले नंबर पर हैं। उन्होंने कहा कि बिहार में सरकार ने शिक्षा को धंधा बना दिया है और गांव-गांव में शराब की दुकानें खुलवा कर लोगों को बीमार और अपंग बनाने का काम कर रही है। उन्होंने नीतीश सरकार पर गंभीर आरोप लगाए और कहा कि इस सरकार के कार्यकाल में झूट का मुलम्मा चढ़ा कर विकास की बातें की गई हैं जबकि अभी भी बिहार में भय, भूख और गरीबी का साम्राज्य है। अरुण कुमार इसे आगे बढ़ाते हैं और कहते हैं कि भय, भूख और बेरोजगारी हर तरफ है और पलायन आज भी जारी है।
दरअसल नीतीश कुमार को लेकर एक आम छवि जो बनी या   बनाई गई है उसे इस सम्मेलन के जरिए तोड़ने की कोशिश भी की गई। खास कर बिहार में इस तरह के किसी कार्यक्रम का आयोजन करना अब संभव नहीं है क्योंकि बिहार में नीतीश अपने तरीके से शासन चला रहे हैं। इसलिए अब सवाल यह भी उठ रहा है कि बिहार में विकास की जो बातें की जा रही हैं वह किनके लिए है। नब्बे फीसद लोगों के लिए या दस फीसद लोगों के लिए।
 सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे मंच के समयोजक और राज्यसभा सदस्य उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि बिहार में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विकास के दावे कर रहे हैं और बिहार में लोग कुपोषण और भूख से मर रहे हैं। नीतीश सरकार के कार्यकाल में किसानोंं की स्थिति दिनों-दिन खराब होती जा रही है। कुशवाहा ने कहा कि किसानोंं के हितों को ध्यान में रख कर राज्य सरकार लारा तैयार किया गया कृषि रोड मैप एक छलावा साबित हो रहा है और इससे किसानोंं को कोई फायदा नही मिल पा रहा है। किसानोंं की स्थिति पहले से भी बदत्तर हो गयी है और उनके नाम पर जिन योजनाओं का संचालन किया जा रहा है उसकी राशि बिचौलिए लूट रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस सरकार में किसान अधिक परेशानी में है जबकि सरकार उनकी उन्नति का दावा कर रही है। धान की खरीद के आंकड़ों की चर्चा करते हुए उन्होंने सरकारी दावे को झूठ का पुलिंदा बताया और कहा कि सरकार को यह बताना चाहिए कि किसानों से अबतक धान की कितनी खरीद की गयी है।
पूर्व विधायक सतीश कुमार ने आंकड़ों के साथ नीतीश कुमार के शासन में बढ़ते अपराध का जिक्र किया तो मंच के सह संयोजक शंकर आजाद ने कोशी में आई बाढ़ में सरकार की नाकामी को बयान करते हुए वहां किए जा रहे लूट का ब्योरा दिया। इनके अलावा पुर्व मंत्री लुतुफुर रहमान, पूर्व विधायक सुधांश शेखर भास्कर, फिल्मकार किरणकांत वर्मा, संजय वर्मा, शिवकुमार सिंह, रामबली चंद्रवंशी, पुर्व सांसद ब्रह्मदेव पासवान ने भी अपना बात रखी। दिल्ली में इस सम्मेलन में जिस तरह लोगों में उत्साह था उससे बिहार नव निर्माण मंच से जुड़े लोगों का भी हौसला बढ़ा है। सूत्रों की मानें तो अक्तूबर में मंच के बैनर तले बिहार में अतिपिछड़ों, दलित-महादलित और अल्पसंख्यकों का सम्मेलन होगा। दरअसल राजनीति में पैठ बनाने के लिए जाीतय समीकरण बनाना जरूरी है और उसी दिशा में मंच ने पहल करने की सोची है। इन सम्मेलनों के बाद मंच राजनीतिक दल के गठन पर गंभीरता से विचार कर रहा है। सूत्रों की मानें तो अगले साल के शुरुआत में नई राजनीति पार्टी वजूद में आएगी और पटना के गांधी मैदान से नीतीश कुमार के ‘सुशासन’ के खिलाफ इस नई पार्टी के मंच से शंखानाद फूंका जाएगा। इस बात के आसार भी नजर आ रहे हैं कि बिहार में मंच तीसरे मोर्चे की कवायद में जुटेगा और नए राजनीतिक विकल्प देने के लिए वह बिहार में एनडीए और यूपीए से अलग कोई अलग गठबंधन बनाए।

No comments:

Post a Comment